भानुकोटि भास्वरं भवब्धितारकं परं
नीलकंठ मीप्सितार्ध दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकाल मंबुजाक्ष मस्तशून्य मक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २ ॥
शूलटंक पाशदंड पाणिमादि कारणं
श्यामकाय मादिदेव मक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र तांडव प्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३ ॥
भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्तचारु विग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोक विग्रहम् ।
निक्वणन्-मनोज्ञ हेम किंकिणी लसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ४ ॥
धर्मसेतु पालकं त्वधर्ममार्ग नाशकं
कर्मपाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्ण केशपाश शोभितांग निर्मलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५ ॥
रत्न पादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकं
नित्य मद्वितीय मिष्ट दैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्प नाशनं करालदंष्ट्र भूषणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६ ॥
अट्टहास भिन्न पद्मजांडकोश संततिं
दृष्टिपात नष्टपाप जालमुग्र शासनम् ।
अष्टसिद्धि दायकं कपालमालिका धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ७ ॥
भूतसंघ नायकं विशालकीर्ति दायकं
काशिवासि लोक पुण्यपाप शोधकं विभुम् ।
नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ८ ॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्ति साधकं विचित्र पुण्य वर्धनम् ।
शोकमोह लोभदैन्य कोपताप नाशनं
ते प्रयांति कालभैरवांघ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥